Welcome to Shashwat Chikitsa
About Us
या क्रियाव्याधिहरणी सा चिकित्सा निगद्यते
चिकित्सा पद्धतियों की प्राचीनता पर विचार करने से यह स्पष्ट है कि
औषधियां के गुणधर्म और कल्पना के का ज्ञान होने से पूर्व स्वस्थ रहने के उपाय के रूप में मर्म और शाश्वत चिकित्सा का ज्ञान जन सामान्य में प्रचलित था ।
प्राचीन समय में स्वस्थ रहने के लिए ऋषि मनीषियों के माध्यम से मर्म एवं शाश्वत चिकित्सा का प्रयोग आमजन करते थे ,परंतु मर्म चिकित्सा में अज्ञानता वश मर्म स्थान पर आघात से होने वाले दुष्प्रभाव के कारण शाश्वत चिकित्सा जिसमें आघात होने पर भी किसी प्रकार का दुष्प्रभाव से रहित होने के कारण आम जनों में अत्यधिक प्रचलित था ,जिसके माध्यम से विभिन्न असाध्य रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है ।परंतु समय काल के प्रभाव में ऐसी विद्या विलुप्त होती गई, परंतु हमारे ऋषि मनीषियों ने आश्रम में इसे जीवित रखा ।
अभी तक इस शाश्वत विद्या के बारे में अधिक जानकारी नहीं होने के कारण इस महत्वपूर्ण आंगिरसी विद्या का प्रचार – प्रसार अधिक नहीं हो पाया । इसके उपयोग के विषय में अधिकांश आयुर्वेद विशेषज्ञ अनभिज्ञ रहे हैं ।
जीवन परिचय
Dr. Swami Baba Bhakti Prakash
- संत अखिल भारत वर्षीय धर्मसंघ करपात्री फाउंडेशन
- योगी निरोगी उपयोगी के सूत्र वाक्य पर पिछले दस सालों से अध्ययन रत।
- वैदिक शाश्वत चिकित्सा के द्वारा समाज सेवा में कार्यरत एवम वैदिक शाश्वत चिकित्सा चिकित्सा के अध्ययन,अध्यापन और विस्तार हेतु कार्यरत।
हमारी संस्थाएं
जीवन संजीवनी निसर्गोपचार केंद्र,पुणे
( Co -Director )
Deshi Aspatal Pvt Ltd Delhi
( Co-Director )
KDU Natural Pvt Ltd
(Co-Director)
Mahila Swavlamban Trust
( President )
वैदिक शाश्वत चिकित्सा का अद्भुत विज्ञान
पुस्तक परिचय
वैदिक चिकित्सा विज्ञान के ऊपर हमारे वेदों में और खासकर अथर्ववेद में औषधि निर्माण काल के पूर्व कई प्रकार के चिकित्सा प्रणालियों के ऊपर हजारों- हजार साल पूर्व काफी शोध हुए हैं , जिसके ऊपर, हमारे अखिल भारतवर्षीय धर्म संघ /करपात्री फाउंडेशन में गुरुजनों और संत जनों के माध्यम से कई प्रकार की चिकित्सा विधाओं जैसे जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा ,अग्नि चिकित्सा, मर्म चिकित्सा और हस्त चिकित्सा जो अब शाश्वत चिकित्सा के रूप में आश्रमों में प्रचलित है के ऊपर काफी शोध हुए हैं और विभिन्न प्रकार के साध्य और असाध्य रोगों की चिकित्सा में अत्यंत सहायक सिद्ध हुआ है।
पिछले 30 वर्षों से वैदिक चिकित्सा पद्धतियों की गुप्ततम पद्धति शाश्वत चिकित्सा (हस्त चिकित्सा )पर निरंतर शोध से इस पद्धति के चिकित्सा विषयक पक्ष का प्रस्तुतीकरण संभव हुआ है।
चिकित्सा जगत में अल्प ज्ञात, वैदिक आश्रम जीवी इस पारंपरिक विज्ञान को वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत करना एक चुनौती भरा कार्य है। लाखों वर्षों से अस्तित्व में रहा यह अद्भुत विज्ञान प्रयोग में नहीं लाए जाने के कारण उपेक्षित एवं रहस्यमय रहा और सिर्फ आश्रमों में संतों के बीच जीवित रहा और आश्रमों में संतों के बीच जीवित रहा
वर्षों के निरंतर अध्ययन ,चिंतन ,शैक्षणिक एवं प्रायोगिक शोध ने इस वैदिक शाश्वत चिकित्सा की उपादेयता को सिद्ध कर इसे पुनः प्रतिस्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया है।
अनेक असाध्य अस्थि जनित बीमारियों में चिकित्सा विहीन पद्धति के रूप में शाश्वत चिकित्सा शीघ्रता से अपना स्थान बनाती जा रही है।
डॉ. स्वामी बाबा भक्ति प्रकाश
शरीर के पंच तत्व
शरीर जिन पांच तत्वों से बना है, क्रमानुसार वे हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। पृथ्वी तत्व से हमारा भौतिक शरीर बनता है। जिन तत्वों, धातुओं और अधातुओं से पृथ्वी (धरती) बनी उन्हीं से हमारे भौतिक शरीर की भी रचना हुई है। यही कारण है कि आयुर्वेद में शरीर को निरोग और बलशाली बनाने के लिए धातु के भस्मों का प्रयोग किया जाता है।
जल तत्व से मतलब तरलता से है। जितने भी तरल तत्व शरीर में बह रहे हैं वे जल तत्व हैं, चाहे वह पानी हो, खून हो या शरीर में बनने वाले सभी तरह के रस और एंजाइम हों। जल तत्व ही शरीर की ऊर्जा और पोषक तत्वों को पूरे शरीर में पहुचाने का काम करते हैं। इसे आयुर्वेद में कफ के नाम से भी जाना जाता है। इसमें असंतुलन शरीर को बीमार बना देता है।
अग्नि तत्व ऊर्जा, ऊष्मा, शक्ति और ताप का प्रतीक है। हमारे शरीर में जितनी गर्माहट है, सब अग्नि तत्व से है। यही अग्नि तत्व भोजन को पचाकर शरीर को स्वस्थ रखता है। इसे आयुर्वेद में पित्त के नाम से जाना जाता है। ऊष्मा का स्तर ऊपर या नीचे जाने से शरीर भी बीमार हो जाता है। इसलिए इसका संतुलन जरूरी है।
जीवन संजीवनी निसर्गोपचार केंद्र
जीवन संजीवनी निसर्गोपचार केंद्र एक अद्वितीय और प्राचीन चिकित्सा पद्धति पर आधारित संस्थान है जो प्राकृतिक तत्वों और ऋषि मनीषियों के ज्ञान को आधुनिक चिकित्सा के साथ समाहित करता है। यह केंद्र वैदिक शाश्वत चिकित्सा की विधियों का उपयोग करके विभिन्न असाध्य रोगों का उपचार करता है।
शाश्वत चिकित्सा में पांच तत्वों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश – का विशेष महत्व है और इन तत्वों के संतुलन से रोगों का निवारण किया जाता है। डॉ. स्वामी वावा भक्तिप्रकाश द्वारा स्थापित इस केंद्र में मरीजों का इलाज बिना किसी दुष्प्रभाव के होता है। यहां पर अग्नि जनित बीमारियों, जोड़ो का दर्द, सर्वाइकल, आर्थराइटिस, साइटिका, माइग्रेन, एड़ी का दर्द, गैस, एसिडिटी, और लिवर समस्याओं का समाधान शाश्वत चिकित्सा पद्धति के माध्यम से किया जाता है।
जीवन संजीवनी निसर्गोपचार केंद्र का उद्देश्य वैदिक और प्राकृतिक चिकित्सा को पुनर्जीवित करना और इसे समाज में प्रसारित करना है, ताकि लोग प्राकृतिक और सुरक्षित तरीकों से स्वस्थ रह सकें। इस पद्धति के माध्यम से, रोगियों को केवल स्पर्श द्वारा ही उपचार प्रदान किया जाता है, जिससे उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
मानव मस्तिष्क की संरचना और कार्य प्रणाली
मानव मस्तिष्क का निर्माण क्रेमियम नाम की फाइब्रस हड्डी के मेनिंजियल नामक थैली में बंद न्यूरॉन सेल्स से हुआ है। हमारे मस्तिष्क में लगभग 80 बिलियन न्यूरॉन सेल्स होते हैं, जिनमें से 90 प्रतिशत न्यूरॉन सेल्स और 10 प्रतिशत गिलियोल सेल्स होते हैं।
ये न्यूरॉन सेल्स हमारे मस्तिष्क की जानकारी प्रसारित और ग्रहण करने की क्षमता को बनाए रखते हैं। मस्तिष्क के तीन मुख्य भाग हैं: अग्र मस्तिष्क, मध्य मस्तिष्क, और पश्च मस्तिष्क। अग्र मस्तिष्क में सेरेब्रम, थैलेमस, और हायपोथैलेमस शामिल हैं, जो बाहरी और आंतरिक वातावरण के समन्वय और नियंत्रण में मदद करते हैं।
सेरेब्रम तर्क और निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार होता है, थैलेमस भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करता है, और हायपोथैलेमस शारीरिक कार्यों जैसे भूख, प्यास, और तापमान को नियंत्रित करता है। मस्तिष्क के इन भागों के बीच समन्वय से हमारी सभी मानसिक और शारीरिक क्रियाएं संचालित होती हैं।
हमारे सनातन में ज्ञान का भंडार वेदों में भरा है
हमारे सनातन धर्म में ज्ञान का भंडार वेदों में समाहित है, जिसे “सर्व ज्ञान मयो वेदः” कहा गया है। चारों वेदों में से एक, अथर्व वेद, ऋषि आंगिरा द्वारा रचित है। इसमें विभिन्न मंत्र, सिद्धियां, और चिकित्सा की अनेक विधियों का वर्णन मिलता है।
इस सृष्टि के निर्माण के समय से ही पंच भूतात्मक सत्ता का अस्तित्व रहा है। पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि, और आकाश के सम्मिश्रण से त्रिदोषात्मक मनुष्य शरीर का निर्माण हुआ है। मानव शरीर के उद्भव काल से ही विभिन्न रोगों से पीड़ित रहा है। प्राचीन काल से मनुष्य स्वास्थ्य संवर्धन और रोग निवारण के उपाय करता आया है।
वेदों में औषधियों के निर्माण से पहले विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों का उल्लेख मिलता है, जो त्रिदोषों और पंच महाभूतों को संतुलित कर मानव को स्वस्थ रखने में सहायक होती हैं। अथर्व वेद से ही आयुर्वेद का जन्म हुआ, जिसे आयु (जन्म से मृत्यु पर्यन्त) का ज्ञान कराने वाला विज्ञान कहा गया है।
ऋषि आंगिरा ने अथर्व वेद में जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, अग्नि चिकित्सा, मंत्र चिकित्सा, अग्निहोत्र चिकित्सा, मधु विद्या, प्रवर्ग्य विद्या, मृत संजीवनी विद्या, और हस्त स्पर्श चिकित्सा का उल्लेख किया है। इन्हीं में से एक विधि शाश्वत चिकित्सा है, जो अंगिरसी और दैवी चिकित्सा का मिश्रित रूप है।
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Hme hmari body ke bare me btaya h bhut hi badiya
welcome to happy life family
आपको अपनी बॉडी के बारे में क्या जानना है।
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Detail me
Extraordinary knowledge…
प्रत्येक भारतीय को जानना और समझना चाहिए चिकित्सा कि इस तकनीक को। बाबा जी ने जीवन संजीवनी केंद्र के संस्थापक श्री राजेश चौहान जी के साथ मिलकर जो राष्ट्र को स्वस्थ रखने का अभियान चलाए है, आनेवाला कल हमेशा उनका ऋणी रहेगा…..
happy life family me hardik swagat
Their optical sights from which meant that grabbed their own feelings