About Us

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या क्रियाव्याधिहरणी सा चिकित्सा निगद्यते

वह क्रिया जिसके द्वारा रोग की निवृत्ति होती है वह चिकित्सा कहलाता है।
“या क्रियाव्याधिहरणी सा चिकित्सा निगद्यते “
चिकित्सा पद्धतियों की प्राचीनता पर विचार करने से यह स्पष्ट है कि
औषधियां के गुणधर्म और कल्पना के का ज्ञान होने से पूर्व स्वस्थ रहने के उपाय के रूप में मर्म और शाश्वत चिकित्सा का ज्ञान जन सामान्य में प्रचलित था ।
प्राचीन समय में स्वस्थ रहने के लिए ऋषि मनीषियों के माध्यम से मर्म एवं शाश्वत चिकित्सा का प्रयोग आमजन करते थे ,परंतु मर्म चिकित्सा में अज्ञानता वश मर्म स्थान पर आघात से होने वाले दुष्प्रभाव के कारण शाश्वत चिकित्सा जिसमें आघात होने पर भी किसी प्रकार का दुष्प्रभाव से रहित होने के कारण आम जनों में अत्यधिक प्रचलित था ,जिसके माध्यम से विभिन्न असाध्य रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है ।परंतु समय काल के प्रभाव में ऐसी विद्या विलुप्त होती गई, परंतु हमारे ऋषि मनीषियों ने आश्रम में इसे जीवित रखा ।
अभी तक इस शाश्वत विद्या के बारे में अधिक जानकारी नहीं होने के कारण इस महत्वपूर्ण आंगिरसी विद्या का प्रचार – प्रसार अधिक नहीं हो पाया । इसके उपयोग के विषय में अधिकांश आयुर्वेद विशेषज्ञ अनभिज्ञ रहे हैं ।

अनुभव से यह सिद्ध हुआ है कि शाश्वत चिकित्सा विधि का समुचित उपयोग किया जाए तो शरीर को अस्थि जनित एवं मानसिक बीमारियों से सरलता और सहजता पूर्वक असाध्य रोगों से निजात पाया जा सकता है ।
शाश्वत चिकित्सा एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है ,जिसमें कम समय में थोड़े से अभ्यास से , सीख कर संपूर्ण मानवता की सेवा की जा सकती है ।
जहां अन्य चिकित्सा पद्धतियों का इतिहास कुछ 100 वर्षों से लेकर हजारों वर्ष माना जाता है, परंतु मर्म चिकित्सा और शाश्वत चिकित्सा को कालखंड से नहीं बांधा जा सकता है ।
जिस प्रकार मर्म चिकित्सा प्रकृति/ ईश्वर प्रदत्त चिकित्सा पद्धति है उसी प्रकार शाश्वत चिकित्सा प्रकृति /ऋषि कुल से पोषित चिकित्सा पद्धति है।
शाश्वत चिकित्सा ईश्वर प्रदत्त और ऋषि कुल पोषित विद्या है। यह स्वास्थ्य का विज्ञान है कोई चमत्कार नहीं। इसके अत्यंत प्रभावशाली होने के कारण यह विलक्षण चिकित्सा प्रणाली चमत्कृत और आश्चर्य चकित करता है परंतु यह ऋषियों द्वारा पोषित विद्या असाध्य व्याधियों से मनुष्य को सुरक्षित रखने की विधा है ।
वैदिक वांगमय में स्वास्थ्य संरक्षण और रोगों से बचाव की विभिन्न पद्धतियों से संबंधित संदर्भ मिलते हैं । वेदों में पर्जन्य , मित्र (प्राण,वायु,जल,वरुण,चंद्र,और सूर्य) को मनुष्य का संरक्षक कहा गया है। सूर्य चिकित्सा, वायु चिकित्सा ,अग्नि चिकित्सा ,जल चिकित्सा ,मंत्र चिकित्सा, अग्निहोत्र चिकित्सा ,मधु विद्या , प्रवग्य विधा,हस्त स्पर्श(शाश्वत) चिकित्सा आदि चिकित्सा पद्धतियों का उल्लेख चारों वेदों में मिलता है ।
विश्व की अत्यंत प्राचीनतम रोग प्रतिरक्षण रोग निवारण चिकित्सा पद्धति द्वारा चिकित्सा करने के योग्य बनने के लिए कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं। शाश्वत चिकित्सा अत्यंत प्रभावी और तत्काल प्रभाव देने वाली चिकित्सा पद्धति है और प्रयोग में सरल और प्रतिकूलता रहित है । इसके सही प्रयोग से शक्ल मानव समाज को अस्थि जनित एवं अन्य शारीरिक व्याधियों से बचाकर ,संपूर्ण विश्व और भारतवर्ष के सभी व्यक्तियों को जो पीड़ित हैं, उन्हें लाभ दिया जा सकता है ।
यह किसी भी चिकित्सा प्रणाली के साथ की जाने वाली निरापद चिकित्सा प्रणाली है ।जहां सभी चिकित्सा विद्या असफल हो जाते हैं, वहां शाश्वत चिकित्सा का प्रयोग बिना बाधा के, अल्प संसाधनों में भी करके लाभ दिया जा सकता है । यह आंगिरसी और दैवीय चिकित्सा विद्या का ऋषि कुल पोषित चिकित्सा स्वरूप है जिसके माध्यम से सिर्फ निर्धारित स्थानों पर स्पर्श और प्रेषित करके असाध्य संधिजनित रोगों से आराम दिया जा सकता है और संधिजनित विकारों को शरीर के रस रसायनों द्वारा ही सही किया जा सकता है ।

गुरुदेव

Dr Gunprakash Chaitanya

अखिल भारत वर्षीय धर्मसंघ
करपात्री फाउंडेशन

डॉ. गुणप्रकाश चैतन्य अखिल भारत वर्षीय धर्मसंघ और करपात्री फाउंडेशन से जुड़े हुए हैं। वे हिंदू मूल्यों और संस्कृति को बढ़ावा देने में योगदान के लिए जाने जाते हैं। अखिल भारत वर्षीय धर्मसंघ एक प्रमुख संगठन है जो पारंपरिक हिंदू शिक्षाओं को बनाए रखने और फैलाने का कार्य करता है, जबकि करपात्री फाउंडेशन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और आगे बढ़ाने के लिए समर्पित है। डॉ. गुणप्रकाश चैतन्य इन प्रयासों में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं, और आधुनिक जीवन में आध्यात्मिक ज्ञान के समावेश की वकालत करते हैं।

जीवन परिचय

Dr. Swami Baba Bhakti Prakash

  • संत अखिल भारत वर्षीय धर्मसंघ करपात्री फाउंडेशन
  • योगी निरोगी उपयोगी के सूत्र वाक्य पर पिछले दस सालों से अध्ययन रत।
  • वैदिक शाश्वत चिकित्सा के द्वारा समाज सेवा में कार्यरत एवम वैदिक शाश्वत चिकित्सा चिकित्सा के अध्ययन,अध्यापन और विस्तार हेतु कार्यरत।

हमारी संस्थाएं 

जीवन संजीवनी निसर्गोपचार केंद्र,पुणे
( Co -Director )

Deshi Aspatal Pvt Ltd Delhi
( Co-Director )

KDU Natural Pvt Ltd
(Co-Director)

Mahila Swavlamban Trust
( President )

शरीर के पंच तत्व

शरीर जिन पांच तत्वों से बना है, क्रमानुसार वे हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। पृथ्वी तत्व से हमारा भौतिक शरीर बनता है। जिन तत्वों, धातुओं और अधातुओं से पृथ्वी (धरती) बनी उन्हीं से हमारे भौतिक शरीर की भी रचना हुई है। यही कारण है कि आयुर्वेद में शरीर को निरोग और बलशाली बनाने के लिए धातु के भस्मों का प्रयोग किया जाता है।
जल तत्व से मतलब तरलता से है। जितने भी तरल तत्व शरीर में बह रहे हैं वे जल तत्व हैं, चाहे वह पानी हो, खून हो या शरीर में बनने वाले सभी तरह के रस और एंजाइम हों। जल तत्व ही शरीर की ऊर्जा और पोषक तत्वों को पूरे शरीर में पहुचाने का काम करते हैं। इसे आयुर्वेद में कफ के नाम से भी जाना जाता है। इसमें असंतुलन शरीर को बीमार बना देता है।

अग्नि तत्व ऊर्जा, ऊष्मा, शक्ति और ताप का प्रतीक है। हमारे शरीर में जितनी गर्माहट है, सब अग्नि तत्व से है। यही अग्नि तत्व भोजन को पचाकर शरीर को स्वस्थ रखता है। इसे आयुर्वेद में पित्त के नाम से जाना जाता है। ऊष्मा का स्तर ऊपर या नीचे जाने से शरीर भी बीमार हो जाता है। इसलिए इसका संतुलन जरूरी है।

जिनमें प्राण है, उन सबमें वायु तत्व है। हम सांस के रूप में हवा (ऑक्सीजन) लेते हैं, जिससे हमारा जीवन है। पतंजलि योग में जितने भी प्राण व उपप्राण बताए गए हैं, वे सब वायु तत्व के कारण ही काम कर रहे हैं। आयुर्वेद में इसे वात नाम से जानते हैं।

आकाश तत्व अभौतिक रूप में मन है। जैसे आकाश अनंत है वैसे ही मन की भी कोई सीमा नहीं है। जैसे आकाश अनंत ऊर्जाओं से भरा है, वैसे ही मन की शक्ति की कोई सीमा नहीं है जो दबी या सोयी हुई है। आकाश में कभी बादल, कभी धूल नजर आते हैं तो कभी वह बिल्कुल साफ होता है, वैसे ही मन भी कभी खुशी, कभी उदास तो कभी शांत रहता है। इन पंच तत्वों से ऊपर एक तत्व है आत्मा। इसके होने से ही ये तत्व अपना काम करते हैं। तभी शरीर में ऊर्जा रहती है और वह इन तत्वों को नियंत्रण में रख सकता है।

मनुष्य का शरीर तंत्रिकाओं पर खड़ा है। विभिन्न प्रकार के ऊतकों से मिलकर अंगों का निर्माण हुआ है। शरीरतंत्र में मुख्य चार अवयव हैं- मस्तिष्क, प्रमस्तिष्क, मेरुदंड और तंत्रिकाओं का पुंज। इसके अलावा कई और तंत्र हैं जैसे श्वसन तंत्र, पाचन तंत्र, ज्ञानेंद्रियां, प्रजनन तंत्र आदि। इन सभी तत्वों को समझ कर हम तत्वों को कुछ प्रयोग के द्वारा संतुलन में कर सकते हैं जिससे हमारे आगे की यात्रा बढ़ सके। जैसे-जैसे हम क्रिया करेंगे उसका अनुभव हमें प्रत्यक्ष मिलेगा। हमारी हाथ की उंगलियों में तत्व संदेश देंगे कि कौन सा तत्व आपके भीतर कम है और कौन सा अधिक है। हम जानते हैं कि हाथ की पांच उंगलियां इन्हीं पांच तत्वों का प्रतिनिधत्व करती हैं। अंगूठा अग्नि का, तर्जनी वायु का, मध्यमा आकाश का, अनामिका पृथ्वी का और कनिष्का जल का प्रधिनिधित्व करती हैं। इन उंगलियों में विद्युत धारा प्रवाहित होती रहती है।

मानव शरीर प्रकृति द्वारा तैयार की गई एक मशीन है जिसके सूक्ष्म संसाधनों व तंत्रों और तत्वों के प्रयोग की सटीक सहज क्रिया के जरिए हम अपनी ऊर्जा को निरंतर गति दे सकते हैं।

मानव मस्तिष्क की संरचना और कार्य प्रणाली

मानव मस्तिष्क का निर्माण क्रेमियम नाम की फाइब्रस हड्डी के मेनिंजियल नामक थैली में बंद न्यूरॉन सेल्स से हुआ है। हमारे मस्तिष्क में लगभग 80 बिलियन न्यूरॉन सेल्स होते हैं, जिनमें से 90 प्रतिशत न्यूरॉन सेल्स और 10 प्रतिशत गिलियोल सेल्स होते हैं।

ये न्यूरॉन सेल्स हमारे मस्तिष्क की जानकारी प्रसारित और ग्रहण करने की क्षमता को बनाए रखते हैं। मस्तिष्क के तीन मुख्य भाग हैं: अग्र मस्तिष्क, मध्य मस्तिष्क, और पश्च मस्तिष्क। अग्र मस्तिष्क में सेरेब्रम, थैलेमस, और हायपोथैलेमस शामिल हैं, जो बाहरी और आंतरिक वातावरण के समन्वय और नियंत्रण में मदद करते हैं।

सेरेब्रम तर्क और निर्णय लेने की क्षमता को नियंत्रित करता है, थैलेमस संवेदी सूचनाओं का प्रसंस्करण करता है, और हायपोथैलेमस शारीरिक कार्यों जैसे तापमान, भूख, और भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करता है। इन न्यूरॉन सेल्स के बीच का संचारण सोडियम आयन की मदद से होता है, जिससे सूचनाएं तेजी से प्रसारित होती हैं। मस्तिष्क का समग्र कार्य स्वस्थ शरीर और मस्तिष्क के संतुलित कार्य को सुनिश्चित करना है।

मस्तिष्क में सेंट्रोसोम की अनुपस्थिति के कारण, न्यूरॉन सेल्स विभाजित नहीं होते हैं, जिससे वे विशेष रूप से संवेदनशील और महत्वपूर्ण हो जाते हैं। ब्रेन के हिस्सों के बीच समन्वय एंडोर्फिन हार्मोन द्वारा होता है, जो प्राकृतिक दर्द निवारक के रूप में कार्य करता है। यह हार्मोन विभिन्न शारीरिक गतिविधियों और प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

मस्तिष्क का स्वस्थ कार्य, तंत्रिकाओं के माध्यम से सूचनाओं के निर्बाध प्रवाह पर निर्भर करता है, जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित होता है। स्पाइनल कॉर्ड भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो मस्तिष्क और शरीर के विभिन्न हिस्सों के बीच संदेश पहुंचाने का कार्य करती है।

हमारे सनातन में ज्ञान का भंडार वेदों में भरा है

हमारे सनातन धर्म में ज्ञान का भंडार वेदों में समाहित है, जिसे “सर्व ज्ञान मयो वेदः” कहा गया है। चारों वेदों में से एक, अथर्व वेद, ऋषि आंगिरा द्वारा रचित है। इसमें विभिन्न मंत्र, सिद्धियां, और चिकित्सा की अनेक विधियों का वर्णन मिलता है।

इस सृष्टि के निर्माण के समय से ही पंच भूतात्मक सत्ता का अस्तित्व रहा है। पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि, और आकाश के सम्मिश्रण से त्रिदोषात्मक मनुष्य शरीर का निर्माण हुआ है। मानव शरीर के उद्भव काल से ही विभिन्न रोगों से पीड़ित रहा है। प्राचीन काल से मनुष्य स्वास्थ्य संवर्धन और रोग निवारण के उपाय करता आया है।

वेदों में औषधियों के निर्माण से पहले विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों का उल्लेख मिलता है, जो त्रिदोषों और पंच महाभूतों को संतुलित कर मानव को स्वस्थ रखने में सहायक होती हैं। अथर्व वेद से ही आयुर्वेद का जन्म हुआ, जिसे आयु (जन्म से मृत्यु पर्यन्त) का ज्ञान कराने वाला विज्ञान कहा गया है।

ऋषि आंगिरा ने अथर्व वेद में जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, अग्नि चिकित्सा, मंत्र चिकित्सा, अग्निहोत्र चिकित्सा, मधु विद्या, प्रवर्ग्य विद्या, मृत संजीवनी विद्या, और हस्त स्पर्श चिकित्सा का उल्लेख किया है। इन्हीं में से एक विधि शाश्वत चिकित्सा है, जो अंगिरसी और दैवी चिकित्सा का मिश्रित रूप है।

मर्म चिकित्सा में 107 मर्म स्थानों को चिन्हित किया गया है, जिन्हें प्राण का स्थान माना गया है। इन्हें प्रेरित और प्रेषित कर विभिन्न साध्य और असाध्य बीमारियों से मुक्ति पाई जाती थी। परंतु, मर्म स्थानों पर आघात करने से हानि होने की संभावना बनी रहती थी। इसी कारण ऋषि आंगिरा ने हस्त चिकित्सा (शाश्वत चिकित्सा) का प्रचलन किया, जिसमें आघात से मृत्यु भय नहीं होता।

शाश्वत चिकित्सा से शरीर के विभिन्न बिंदुओं को स्टिम्युलेट कर ऊर्जा का संचार होता है। यह चिकित्सा पद्धति शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करती है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और मानसिक तनाव में कमी आती है।

शाश्वत चिकित्सा के निर्धारित बिंदुओं पर दबाव डालने से शरीर में हार्मोन्स का स्राव होता है, जिससे जोड़ों के दर्द, पीठ दर्द, कमर दर्द आदि में आराम मिलता है। इसके अलावा, शारीरिक सौंदर्य निखारने और वजन नियंत्रण में भी यह सहायक होती है।

ऋषि आंगिरा ने यह शाश्वत ज्ञान मानव समाज को दिया ताकि बिना बाहरी औषधियों के, शरीर के अंदर ही ईश्वर प्रदत्त दवाइयों से स्वास्थ्य प्राप्त किया जा सके। यह प्राचीन चिकित्सा पद्धति आज भी मानव समाज के लिए अत्यंत उपयोगी है।

This Post Has 5 Comments

  1. Swami

    शाश्वत समाधान
    “अब हर मुश्किल का हल होगा”

  2. Pradip kumar Mahapatra

    I have gone through in details of Saswat chikitsa as depicted above. It is a wonderful healing therapy , which is incomparable and unchallenged in its nature.

  3. swami

    thank u and welcome in happy life family

  4. Anshu Singhal

    शाश्वत चिकित्सा एक चमत्कारी चिकित्सा पद्धति के साथ साथ विज्ञानिक पद्धति है।
    बहुत ही जल्दी स्वस्थ करने वाली चिकित्सा पद्धति है।
    धन्यवाद गुरू जी।
    धन्यवाद राजेश सर।

  5. droversointeru

    Everything is very open and very clear explanation of issues. was truly information. Your website is very useful. Thanks for sharing.

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