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वैदिक शाश्वत चिकित्सा: प्राचीन विद्या और आधुनिक उपयोग
वैदिक शाश्वत चिकित्सा एक अद्वितीय विद्या है जिसमें बिना मर्म स्थनों को स्पर्श किये केवल पांच ऊर्जाओं के माध्यम से पंच तत्वों को संतुलित किया जाता है। इस प्रक्रिया द्वारा वात, पित्त और कफ को संतुलित कर जोड़ों और संधि वात की बीमारियों का उपचार किया जा सकता है। अंगिरा ऋषि इस विद्या के प्रणेता माने जाते हैं और अथर्ववेद के कई श्लोकों में इसे अथर्वणी विद्या के रूप में वर्णन किया गया है।
अथर्ववेद में विभिन्न श्लोकों जैसे “अथर्वणी हस्तसंपूर्णी” (अथर्ववेद 10/2/3) और “पंचविः अंगुष्ठिः: मर्म चिकित्सा” (अथर्ववेद 11/4/5) में इस चिकित्सा की महत्ता और विधियों का वर्णन मिलता है। जोड़ो के दर्द और सामान्यीकृत फ्लूक्स का उपचार इस चिकित्सा द्वारा मर्म स्थनों के स्पर्श से किया जाता है जिससे विभिन्न प्रकार के दर्द में राहत मिलती है।
शाश्वत चिकित्सा में पंचतत्वों का संतुलन भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसका उल्लेख “पृथिव्यां: पृथिव्यां स्पृशन्तम्” (अथर्ववेद 12/1/12) जैसे श्लोकों में मिलता है। इस प्राचीन विद्या का महत्व आज भी है और यह अनेक व्याधियों से मुक्ति दिलाने में सहायक है।
इस प्रकार, वैदिक शाश्वत चिकित्सा प्राचीन ज्ञान और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का एक संगम है, जो आज भी प्रासंगिक और प्रभावी है।